उप-राष्ट्रपति CP राधाकृष्णन की ‘सिलाई से सियासत’ तक की यात्रा!

साक्षी चतुर्वेदी
साक्षी चतुर्वेदी

तमिलनाडु के तिरुप्पुर से निकलकर दिल्ली की पावर गली तक का सफर कोई छोटा-मोटा नहीं होता। लेकिन CP राधाकृष्णन ने यह कर दिखाया और वो भी 452 वोटों के भारी बहुमत के साथ।

विपक्ष ने सोचा था कि ‘जस्टिस’ (सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज बी सुदर्शन रेड्डी) के नाम पर कुछ न्याय हो जाएगा… लेकिन हुआ वही जो NDA चाहती थी।

“क्रॉस वोटिंग हो सकती है,” ऐसा कहने वाले अब वोटिंग मशीन की बैटरी चेक करवा रहे हैं।

कैसे हुआ चुनाव और क्या रहा नतीजा?

  • कुल वोट डाले गए: 767

  • वैलिड वोट: 752

  • अमान्य वोट: 15 (किसी ने emoji बना दिए क्या?)

  • CP राधाकृष्णन: 452 वोट

  • बी सुदर्शन रेड्डी: 300 वोट

निर्वाचन अधिकारी पीसी मोदी ने शाम 6 बजे मतगणना शुरू की और 6:42 पर लोकतंत्र की घंटी बजा दी – “राधाकृष्णन जी, आप उपराष्ट्रपति चुने गए हैं।”

From Coir to Chair:

जन्म: 20 अक्टूबर 1957, तिरुप्पुर

शिक्षा: BBA

1974 में RSS से जुड़े, फिर जनसंघ के कार्यकारिणी सदस्य बने

दो बार लोकसभा सांसद (कोयंबटूर से)

कोच्चि कॉयर बोर्ड के चेयरमैन रहे – “नारियल से निकला नेता!”

2020-2022: BJP केरल प्रभारी

“सिर्फ रेशे से रसूख तक नहीं, UN महासभा से ताइवान टूर तक भी गए साहब!”

तो धनखड़ जी ने क्यों छोड़ा पद?

जगदीप धनखड़, जो 2022 में उपराष्ट्रपति चुने गए थे, उन्होंने स्वास्थ्य कारणों का हवाला देकर जुलाई में इस्तीफ़ा दे दिया।

उपराष्ट्रपति चुनाव: हाउ डज इट वर्क?

वोट कौन डालते हैं? लोकसभा + राज्यसभा सांसद

मनोनीत सांसद वोट डाल सकते हैं?  (यहाँ तो VIP एंट्री है)

20 प्रस्तावक + 20 अनुमोदक + ₹15,000 डिपॉजिट = टिकट टू ‘Vice-President House’

Eligibility: कौन बन सकता है उपराष्ट्रपति?

भारतीय नागरिक होना चाहिए

35 साल से कम नहीं

राज्यसभा के लिए योग्य

कोई लाभ का पद न हो (P.S. चाय की दुकान चलेगी!)

भारत में लोकतंत्र जिंदा है… और वोटिंग मशीन भी!

इस चुनाव में कई सीख हैं:

452 वोट मिलना मज़ाक नहीं, ये बताता है कि NDA का होमवर्क मजबूत था

विपक्ष को एक बार फिर ट्यूशन की ज़रूरत है

और CP राधाकृष्णन को बधाई, उन्होंने “किसी रेशमी सपने” को हकीकत बना दिया

“राजनीति में अगर नारियल भी हथियार बन जाए, तो समझ लीजिए आप भारत में हैं!”

अब CP राधाकृष्णन देश के दूसरे सबसे ऊँचे संवैधानिक पद पर आसीन होंगे। संसद में हंगामों को शांत करना हो, या सांसदों को संयम सिखाना हो — अब सब उनकी जिम्मेदारी है।

कुल मिलाकर, ये कोई नारियल पानी पीने का काम नहीं है!

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